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24 November 2012

हम हँसते हैं जग गाता है

हम हँसते हैं जग गाता है
जब मेघ घने हो जाते हैं,
घनघोर अँधेरी रातो में|
देख नहीं हम पाते हैं,
बिना चाँद की रातों में |
अनिष्ट की आशंका से,
घबराते हैं, डर जाते हैं |
विफलता के क्षण आते हैं,
हम खड़े नहीं हम पाते हैं |
विश्वास जब डगमग करता हैं,
हम रोते है, जग हँसता हैं|
पानी टिप-टिप पड़ती हैं,
छीटें उसके पड़ते हैं,
हम भीग- भीग कर सोते है,
सिहरन सिकुडन हम सहते है| 
जब रिश्तों के ठंढेपन से,

गहरा सदमा लगता है,
हम पार नहीं कर पाते है,
अलहिदगी तक  सह जाते है|
रिश्तो में बिखरन होती है,
अकेले हम पड जाते है|
मेहनत तब रंग लाती है,
परिस्थिति नई बनाती है,
हम सिखते है कुछ करते है,
नई कहानी गढते है|
अमीक निशा छट जाती है,
प्रतिकूल, अनुकूल बन जाता है
नया सबेरा आता है
हम हँसते है जग गाता है
संजय कुमार
अमीक- गहन
अलहिदगी-पृथकता