जाने क्यों अक्सर महसूस होता है कि हम
अलग अलग टापू में जी रहे है
और इसे एक रिश्ते का नाम दे रहे हैं.
पानी कि लकीरों से ये रिश्ते,
ये रिश्ते
कभी खून के है,
कभी दोस्ती के,
कभी अनाम कोमल भावनाओं के,
पर लगते एक जैसे है
जोडने से ही जुडते है स्वयं नहीं.
क्योंकि जुडने के लिए हर दो की चाह जरूरी है
फिर,
इस जरुरत से निपटने पर
सब अपनी अपनी जगह लौट आते है
जिंदगी के भागमभाग में शामिल होने के लिए
कभी खुशी या गम को,
बांट लेने के चाह होती है तो जुड जाते है दूसरे टापू से |
लेकिन ढूंढना पड़ता है
कौन है फुरसत में इन दिनों
और
अगर चाह हो भी तो, किसी खास से जुडने की.
तो फुरसत में आते-आते
इतना बदल जाता है
कि बिलकुल दूसरा हीं हो जाता है
जिसे बाँटना था.
डॉ. अर्चना
प्रतिक्रिया --मैंने जो महसूस किया
जाने क्यों अक्सर महसूस होता है
कि हम अलग अलग टापू में जी रहें है
और इसे ही रिश्ते का नाम दे रहें है.
पानी की तरंगों के तरह हैं ये रिश्ते
ये रिश्ते---
कभी खून के
कभी दोस्ती के
कभी अनाम कोमल भावनाओं के
पर लगते कैसे है- एक जैसे
जोडने से ही जुडते है
स्वंय नहीं .
दो जरुरी हैं जुड़ने के लिए
पर टूटने के लिए.......
शायद नियति है टूटना नहीं ,
नहीं! नहीं! स्वाभाविक है टूटना
पर जुड़ने में होता है स्वार्थ या
कोई अनकही मजबूरी
रिश्तों में स्वार्थ के अंश नहीं रहते क्यों
हर- दम, हर –पल, हर -क्षण
मुझे बनाना है ऐसे रिश्ते
जो खुदगर्जी के हो
ऐसे खुदगर्जी जो हर दम, हर पल, साथ रहे
टूटे तो ऐसे, जब सभी ने मारा हो
पानी के तरंगों की तरह इन रिश्तों को
तभी तो
तरंगों के बाद मिलेगा के बाद रिश्ता
जो टूटेगा भी तो,
बिखरेगा नहीं
बिखरेगा तो दिखेगा नहीं –
हर दम हर पल हर क्षण ....
संजय कुमार
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र
रायपुर