संबध तो पानी से भरा माथे पर रखा मिट्टी का घड़ा है जिसे बड़ी सावधानी से लेकर पनघट से घर तक लाना पडता है. जरा सी सावधानी हटी कि घड़ा जमीन पर गिर जाता है और पानी भी बह जाता है. इन्ही रिश्तों ने मुझे ताकत दी है कि खुश रह सकूँ.
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16 October 2012
Divaswapna: फिर आज मेरे मन की वीणा
Divaswapna: फिर आज मेरे मन की वीणा: फिर आज मेरे मन की वीणा कुछ नए नए सुर रचती है कहती है जीवन निर्झर है निर्बाध अहर्निश बहती है.... फिर आज मेरे मन की वीणा....
10 October 2012
पत्थर को शीशे से तरासते देखा है बहुत
पत्थर को शीशे से तरासते देखा है बहुत
पत्थर को शीशे से तरासते हुए देखा हैं बहुत
कोई शीशे को पत्थर से तरासे तो कोई बात बने|
बीते लम्हों को कोसना है बहुत आसान
कोई नया लम्हा बना सके तो कोई बात बने|
समस्या खड़ी करना मेरी फितरत तो नहीं
कोई समस्या सुलझा सके तो कोई बात बने|
हर कोई रास्ते में रोड़ा अटकाए खड़ा है
कोई नया रास्ता बना सके तो कोई बात बने|
आनंद लिया हैं हमने फूलो की खुशबू का बहुत
कोई काँटों की खुशबू ले सके तो कोई बात बने|
जंगलो में देखी हैं शांति बहुत,
कोई शहरों में ला सके तो कोई बात बने|
आदर्शो और मूल्यों की बात करना है आसान,
कोई जीवन में उतार सके तो कोई बात बने|
मिथकों में जीना है तो जी लो मजे से,
अगर हकीकत दिला सके तो कोई बात बने|
समर्थो के लिए करते है सभी कुछ न कुछ,
गरीबो के लिए कुछ करो तो कोई बात बने
धारा में बहना हैं बहुत ही आसान,
धारा की दिशा मोड सको तो कोई बात बने|
सफलता में मुस्कुराते हुए देखा है सभी को
विफलता में हँसकर दिखाओ तो कोई बात बने|
मैंने देखे है लोगो को चाँद पर थूकते हुए
एक नया चाँद बना सको तो कोई बात बने|
मेमने की शक्ल में बहुत देखे भेडिये,
कोई भेडिये को मेमना बना सके तो कोई बात बने|
दंगे कारवाना हैं बहुत ही आसान,
कोई अमन -चैन ला सके तो कोई बात बने|
तुमने भेजे है यहाँ आतंकवादी बहुत
अब अपने घर को बचा सको तो कोई बात बने|
कश्मीर को तोडने की कोशिश की हैं बहुत,
अब सिंध बचा सको तो कोई बात बने |
बाप दादा की कमाई पर इठलाना है बहुत आसान
अपने लिए दो रोटी कमा सको तो कोई बात बने |
कायरो की भीड के अगुआ बहुत बन लिए,
अब बहादुरों की पंक्ति में आ सको तो कोई बात बने|
बहुत मनाई जयंतियां गाँधी, महावीर और गौतम बुद्ध की,
जीवन में उनके मूल्यों को उतार सको तो कोई बात बने|
बहुत बांटी हैं नफरत हिंसा और वैमनस्य,
कुछ प्यार भी बाँट सको तो कोई बात बने|
जो रोज देखते आयें हैं वो देखा बहुत,
कुछ नया कर दिखाओ तो कोई बात बने|
संजय कुमार
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र, रायपुर
धीरज न खोयिये ,धीरे- धीरे चलिए
धीरज न खोयिये ,धीरे- धीरे चलिए
काम कुछ कर जाईये, रास्ता नया बनाइये
अगर कुछ कर जायेंगे, तो लक्ष्य नया पा जायेंगे,
अगर भटक जायेंगे तो ‘कहाँ’ पहुँच जायेंगे?
धीरे या तेज चले , फिर भी लक्ष्य पाएंगे
रुक गए गर ‘कुचल’ दिए जायेंगे
संघर्ष कुछ कर जाईये, तकलीफें कुछ पाईये
‘नजर’ नहीं हटाईये. चलते -बढ़ते जाईये
कोशिश करते जाईये , चिराग नया जलाईये.
संकल्प मन में लाईये, रास्ते नए बनाईये
पैसे भले कमाईये , रिश्ते नहीं गवांईये,
कुछ नया कर जाईये, नए रास्ते बनाईये.
‘आगाज़’ अगर कर गएँ तो ‘अंजाम’ तक पहुंचायिये,
कुछ नया कर जाईये, उम्मीद ना मिटाईये.
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लिखने लायक बन जाईये,
या पढने लायक लिख जाईये.
इतिहास नया बनाइये
चलते बढ़ते जाईये.
लक्ष्य नया बनाइये
काम नया कर जाइये
धीरज न खोयिये ,धीरे-धीरे बढिए .
संजय कुमार
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र
रायपुर
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बात इतनी छोटी सी थी
बात इतनी छोटी सी थी
बात इतनी छोटी थी
पर तुम जोर से हंसी थी
साड़ी की सलवटो में तुम
क्या खूब दिखी हो
मोतियों से दांत
किस तरह बिखर गए थे
लाल रंग की चूनरी पर तुम क्या फबी थी
बात कितनी छोटी सी थी --- पर तुम जोर से हंसी थी
सुनहले से केश तुम्हारे
किस तरह बिखर गए थे
और तुम किस तरह अनजान खड़ी थी
जबकि आंख तुम्हारे ढक चुके थे
उस दिन की हीं बात लो
जब हम तुम मिले थे
शरीर तुमने किस तरह सिमटा लिया था
और लाज से किस तरह गड़ गयी थी
होठ तुम्हारे किस तरह सिल गए थे.
हवा की इक सरसराहट से तुम
किस तरह डरी थी
आंख तुमने पूरी तरह से ढक लिया था.
आज जब हम वर्षो साथ रहे हैं
दुखो और सुखो से साथ चले हैं.
तब बात इतनी छोटी सी थी तुम जोर से हंसी थी
खुल गए से सारे द्वार
हो गयी थी जिंदगी एक बहार
पर अब ऐसा नहीं होता कोई बताये एक बार
जबकि बात इतनी बड़ी है
तुम नहीं हंसी थी
इस समय की बात लो
बात कितनी बड़ी है
पर तुम नहीं हंसी हो
और कितने गीत लिखू तुम पर
जब तुम चुप -चाप खड़ी हो
बात कितनी बड़ी थी
तुम नहीं हंसी हो.
संजय कुमार
आज का नेता
आज के नेता
अब बोलना होगा नहीं
उन्हें , जो जनता के सेवक बन
वोट लेते हैं, चले जाते है
मॉल लूटकर घर सजाते हैं
देश लूटकर भविष्य बनाते हैं |
ईद की चाँद की तरह कम हीं दिखाई देते हैं,
कब आते और कब चले जाते हैं
पांच साल में बामुश्किल टकराते है
और होश को 'आगोश' में लेकर वोट ले जाते है |
ये चरण छूकर सेवक बनाने का उपकर्म करते हैं
सेवा शुल्क लेने का भी दुष्कर्म करते हैं. |
अब बोलना होगा नहीं
-जोर से नहीं
इन सफेदपोश गुंडों को
जो गए थे जेल, हत्या और बलात्त्कार के जुर्म में
और लोट आये है 'मसीहा' बनकर
हर चुनाव जीत जाते है
हभी छल पे कभी बल पे
कभी गुंडों के दल पे.
अब बोलना होगा नहीं, जोर से नहीं,
जो दिखते है साधु सन्यासी जैसे...
और बात करते है आदर्शो की मूल्यों की
और खून करते है इन सब की.
दिन के उजाले में जो संत दिखाई देते है
'ओ' रात के अंधरे में बलात्कार तक करते है
इनपर 'हत्या' का इल्जाम है
एक, दो या चार नहीं,
पूरे के पूरे समाज के
नपुंसक बनाया है पीढ़ी दर पीढ़ी को
इसीलिए इन्हें बोलना होगा नहीं
जोर से नहीं |
हम सब है उपभोग की बस्तु
केवल एक दो चार नहीं
हम सब.
इन्हें बोलना होगा नहीं, जोर से नहीं
पशुओं से तुच्छ है हम सब इनकी नजरों में
कूड़े कर्कटो के ढेर है हम सब
इन्हें बोलना होगा नहीं, अब केवल नहीं|
हमें नहीं उठना पालतू जानवरों के स्तर तक,
उपभोक्ता संस्कृति के उपभोग की बस्तु बनकर,
नहीं ढो सकते इन्हें एक बार फिर से
एक ही गुलामी थी हम सब के लिए
अब इनकी नहीं करेंगें
अब इनकी नहीं करेंगें.......
संजय कुमार
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