संबध तो पानी से भरा माथे पर रखा मिट्टी का घड़ा है जिसे बड़ी सावधानी से लेकर पनघट से घर तक लाना पडता है. जरा सी सावधानी हटी कि घड़ा जमीन पर गिर जाता है और पानी भी बह जाता है. इन्ही रिश्तों ने मुझे ताकत दी है कि खुश रह सकूँ.
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20 November 2013
फिर भी नहीं मरा हूँ
फिर भी नहीं मरा हूँ
सच के साथ खड़ा हूँ
तब भी नहीं मरा हूँ|
कफ़न साथ लिए बढ़ा हूँ,
रास्ते अपने खुद गढ़ा हूँ|
दूब जैसा बढ़ा हूँ
जीवन नजदीक से पढ़ा हूँ|
समस्या से हरदम लड़ा हूँ
पहाड की तरह अड़ा हूँ|
आग में तपा हूँ|
काटों में नंगे पैर चला हूँ,
अपमान बा-मुश्किल सहा हूँ |
फिर भी नहीं मरा हूँ|
आगे हरदम बढ़ा हूँ,
पहाड की तरह लड़ा हूँ,
आग की तरह जला हूँ,
फिर भी नहीं मरा हूँ |
संजय कुमार
3 February 2013
जिंदगी एक संग्राम
जिंदगी एक संग्राम
जिंदगी एक संग्राम है, जीत कर हीं मानेगें |
सामने पहाड़ आये तो रौंद उसको डालेंगे|
नदी, जंगल कुछ आ जाए, रास्ता बना डालेंगे,
मंजिल पाकर मानेगें, पतवार नहीं अब डालेंगे |
कोई मस्अला मुश्किल नहीं, हल कर उसको डालेंगे |
आओ अब संघर्ष करे, तज्किरा बंद करें|
रात घनघोर काली हो, भोर न होते वाली हो|
दीप जलाकर लायेंगे, अंधकार हटाकर गायेंगे|
पौधे नए लगाएँगे, फूल नए खिलाएंगे|
काम बड़े कर जायेंगे, इतिहास नया रच पाएंगे|
अनीति- अनाचार हटाएंगे, नया प्रकाश लायेंगे|
जान अब लड़ायेंगे, असंभव संभव कर पाएंगे |
जब ‘दिनकर’ दिख न पायेगा, घना अंधकार छायेगा |
नया प्रकाशपुंज आएगा, रोशनी नई फैलाएगा|
गिड़कर- गिड़कर सम्हल जायेंगे, बढते आगे जायेगे|
परिश्रम करते जायेगे, मंजिल अपनी पायेगे|
जिंदगी एक संग्राम है, जीत कर हीं मानेगें |
सामने पहाड़ आये तो रौंद उसको डालेंगे|
संजय कुमार
ताज्किरा- चर्चा
मस्अला-समस्या
8 January 2013
क्या बदला है
क्या कुछ बदला हैं ?
संजय कुमार, मुख्य प्रबंधक, स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र, रायपुर
रामलाल ने नई साइकिल खरीदी थी| बहुत खुश था वो और अपने घर लौट रहा था|
उबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते पर बिजली-बत्ती भी नहीं थी| अँधेरे में वह एक बड़े से गढ्ढे में गिर गया|
बेचारे को जोर से चोट भी लगी और कीचड से लथ-पथ भी हो गया। गढ्ढे से बाहर आने कि
हड़बड़ी में वह मोटरसाइकिल पर जा रहे एक छुटभैये नेता से टकरा गया| टक्कर खाकर वह
भी गढ्ढे में गिर पडा। उसके चम्चों ने रामलाल की धुनाई करते हुए कहा-
"सार, तोरा साइकिलों
चलाबे ना आवेला"
(साले, तुम्हें साइकिल चलानी भी नहीं आती)
"तोहरा के साइकिल
के देहल्स"
(तुम्हें ये साइकिल
किसने दी ?)
उन लोगों ने उसकी साइकिल भी छीन ली। वह रोता रहा, चिल्लाता रहा, पर उसकी सुनने वाला कौन था? बेचारे की वर्ष भर
की जमा पूँजी भी छिन गई। और अब काम पर जाने में भी समय ज्यादा लगेगा।
दस वर्ष पश्चात नेताजी एम एल ए बन गए पर आज भी रामलाल पैदल ही काम पर जा
रहा है। नेताजी का मोटरसाइकिल प्रेम अभी भी कायम था। वे मोटरसाइकिल पर तफरी करने
निकले थे। उनकी मोटरसाइकिल ने सडक के किनारे चल रहे रामलाल को पीछे से टक्कर मार
दी। टक्कर इतने जोर की थी कि उसका दाहिना
पैर टूट गया। तभी पीछे से आवाज आई-
"अबे साले . . . अइसन चलत बार,
जैसे रोडवा तोर बाप के हव।"
(साले, ऐसे चल रहो हो कि सडक तुम्हारे बाप ने बनवाई है।)
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