तुम इंतजार में थी कोई आयेगा, रुकेगा, तुम्हारे लिए| और तुम चुपचाप खड़ी थी रुकी हुई, इंतजार करते हुए | गतिहीन , चुपचाप खड़ी जबकि रुकने से नहीं, बढ़ने से हीं पहचान बनती है| पर तुम जो खड़ी , रुकी , बस इंतजार में| कोई आयेगा, रुकेगा तुम्हारे लिए| | पर सब है समय के तरह बढ़ते है , चलते हैं, इंतजार नहीं करते| गतिमान होते हैं प्रतिक्षा नहीं करते| पर तुम हो, न चलती हो, न बढती हो, बस पतिक्षारत हो कोई आयेगा, रुकेगा, तुम्हारे लिए| संजय कुमार स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र रायपुर |
संबध तो पानी से भरा माथे पर रखा मिट्टी का घड़ा है जिसे बड़ी सावधानी से लेकर पनघट से घर तक लाना पडता है. जरा सी सावधानी हटी कि घड़ा जमीन पर गिर जाता है और पानी भी बह जाता है. इन्ही रिश्तों ने मुझे ताकत दी है कि खुश रह सकूँ.
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24 October 2011
तुम इंतजार में थी
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