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24 October 2011

तुम इंतजार में थी

तुम इंतजार में थी 
कोई आयेगा, रुकेगा,
तुम्हारे लिए|
और तुम चुपचाप खड़ी  थी
रुकी हुई,
इंतजार करते हुए |
गतिहीन , चुपचाप खड़ी
जबकि रुकने से नहीं, बढ़ने से हीं
पहचान बनती है|

पर तुम जो खड़ी ,
रुकी ,
बस इंतजार में|
कोई आयेगा, रुकेगा
तुम्हारे लिए|

पर सब है
समय के तरह
बढ़ते है ,
चलते हैं,
इंतजार नहीं करते|
गतिमान होते हैं
प्रतिक्षा  नहीं करते|
पर तुम हो,
न चलती हो,
न बढती हो,
बस पतिक्षारत  हो
कोई आयेगा, रुकेगा, तुम्हारे लिए|
संजय कुमार
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र
रायपुर

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