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26 October 2011

डाकू कौन


डाकू कौन
आज कल बैंक डकैती की खबर आती ही रहती है। पर हमें काहे का डर। लगता ही हीं था कि डकैत हमारे कभी हमारी शाखा में आएगें। और वो भी दिन-दहाड़ेहम जो सोचते है वह होता कहा है और जो होता है, वह हम सोचते कहा।
बहुत सी शाखाएं थी पर डकैतों को तो हमारी ही शाखा में आना था बस आ ग उस रोज - बिना बतायेरोज के भांति गार्ड सोया हुआ था अपने रोज के काम में वो कोताही नहीं बरतता था। वह काम में बहुत अच्छा थासे  घर में भी बैंक की बहुत याद आती थी यह अलग बात है कि बैंक में रहा तो घर की हीं चिंता किया करता था। डकैतों को उस गार्ड को अपने गिरफ्त में लेने में कोई मुश्किल नहीं आई
शाखा का अलार्म हमेशा ही खराब रहता हैपर हम कहॉं मानने वाले थे। ‘हमने आव न देखा ताव’ और अलार्म बजा दिया हाय रे मेरी किस्मत! आलार्म बज भी गयामुझे बताया गया था कि जैसे हीं  अलार्म बजायेंगें पुलिस दौड़ी आयेगी और डकैत डर कर भाग जायेंगे। पर डकैत थे चुस्त और पुलिस थी सुस्त। अलार्म  बजने से शाखा में पुलिस तो नहीं आई, पर डकैतों को गुस्सा जरूर आया। और, उन्होंने मेरे सिर पर राईफल के बट  से मार  दिया। । तीन  दिन तक होश आया और जब आया, तो अपने को बहुत बुरी स्थिति में पाया
थानेदार का पहला प्रश्न था
“आप बैंक में कब आयें ?”
महाशय , 1990  में” मेरा सीधा जबाब था।
“ज्यादा स्मार्ट मत बनो” – थानेदार डॉंटते  हुए पूछा
“नहीं महाशय, ऐसी कोई बात नहीं है” मैंने डरते हुआ बोला। मानो डाका मैंने ही डाला है । 
 “तब क्या बात है?” थानेदार ने लगभग चिल्लाते हुए कहा 
 “मैं पश्नकर रहा हूँ कि आप इस शाखा में कब आये?” थानेदार ने समझाया ।
 “बस तीन दिन हीं तो हुए”मैं ने बताया
 “देखो, महाशय का तीन ही दिन हुआ है और ये कांड करा गये” मेरे ओर इंगित करते हुए उसने कहा “शर्म नहीं आती आपको। यहॉं आये तीन दिन हुए और इतना बड़ा कांड करवा दिए। इस शाखा के खुले हुए चालीस साल हो गए पर कभी ऐसा नही हुआ आपने तीन दिन में  शाखा  का  बेड़ा गर्क कर दिया ” उसने मुस्कुराते हुए कहा
इसमें  मेरा कोई रोल नहीं है?” मैंने कहा
“तो किसका है?” उन्होंने फिर पूछा
मुझे नहीं मालूम साहेब”  मैंने कहा मैं अब तक बहुत परेशान हो गया था और  मुंझे कोई रास्ता नही दिखाई दे रहा था
उसने मुझसे प्रश्न किया, “आपका घर किधर है ?”
मुझसे फिर गलती हो गयी और मैं कहा कि आपके थाने की ओर से हीं तो होकर जाता हूँशायद बताना चाहता था कि उनसे मेरी पुरानी जान -पहचान है
 “तो ठीक है आप रोज एक बार मुझसे मिलकर जाईयेगा उन्होंने आदेश दिया
मैं तो डर ही गया कि अब मुझे रोज थाने के चक्‍कर काटने है। इस तरह मैं रोज आधे घंटे पहले निकलने  लगा घर में भी मेरा बुरा हाल था बीबी कहती कि मैं इस घटना को संभाल नहीं सका दोस्तों ने कहा कि कैसा मेनैजर हैबॉस कहते है कि थाने  के चक्कर लगाओगे कि कुछ काम भी करोगे तुम में समस्याओं से जूझकर और बाद में बेदाग निकालने कि क्षमता  नहीं है फिर वे बताते, “when I was Senior Manager-----Main Branch , I had handled ten such cases very effectively and come out with flying colours”  मेरे प्रिय मित्र भी हाँ में हाँ मिलाते । इस संदर्भ में प्रश्नकर अपनी दुर्गति नहीं करना चाहता था, इसलिए चुप हीं रहा।
पर अब में इस तरह के कार्यों में नहीं उलझता” उन्होंने धीरे से कहा। शायद वे भाँप चुके थे कि मै सहयोग मांगने वाला था शायद उन्होंने इसलिए ऐसा कहा
इस बीच में मुझे तरह तरह के लोगो से वास्ता हुआतरह-तरह के लोगो को दिखाया गया। पहचानने को कहा गया
मैंने उन्हें बताया कि चोर मुँह पर कपडा बाँधकर आये थे मैं कैसे पह्चान सकता हूँ
“कैसे नहीं पहचान सकते है? यह तो अजीब बात हुई। चोरी आपके बैंक में हुई और हमें पकड़ना है, तो कैसे पकड़ेगे इतनी भी समझ नहीं है आपको। उसने लगभग डॉंटते हुए कहा 
बार बार मुझे बुलाया जाता और डकैतो  को पहचानने के लिए बोला जाता कभी मुझे लगता कि ये लोग बहुत जोर शोर से डकैतों को खोज रहे है कभी लगता कि केवल मुझे ही तंग कर रहे है बीच में उनके बहुत सारे खर्च मै कर चुका था उनकी छोटी-मोटी आवश्‍यकता के लिए जो भी सामान आता वह सामान तो थानेदार साहेब को देता, पर बिल हमलोग को दे देता मुझे समझ नहीं आता कि उसे कैसे पता लग जाता कि पैसा हमें हीं देना है फिर भी,  मुझे लगा कि चलो इससे एक अच्छा मैसेज जायेगा पुलिस खोज तो रही है। मैं खुश भी था कि पुलिस काफी मुस्तैद है
इस तरह कई दिन बीत गए मेरा थाने में आना-जाना अनवरत चलता रहा यह मेरे रूटीन में आ गया था मै भी उनकी बात सुनने का आदि हो गया था पिछले माह सैलरी में जो बढ़ोतरी हुई थी, उससे बढे हुए खर्च की भरपाई हो रही थी। मैंने सोचा कि शायद सैलरी इसीलिए बढाई गयी थी
एक रविवार को शाखा में बैठा था काम बहुत पेंडिंग जो हो गया था। ग्रिल लगा हुआ था। उस घटना यहीं सीख मिली थी। इसलिए दरवाजा बंद  ही रखते थे “दरवाजा खोलिये” ऐसी आवाज आई
हमें लगा कि कोई जरूरतमंद होगा रविवार को जरुरतमंद लोग ही आते थेदेखने के बाद लगा कि सही आदमी है गार्ड हमेशा मेरी तारीफ करता था कि मै कैसे आदमी को पहचान जाता हूँमुझे यह बहुत अच्छा लगता था मै फुले नही समाता था वैसे गार्ड बीच बीच में बोलता था कि उसने बंदूक जरा अलग रख दिया था इसलिए डकैतो ने उस पर कब्ज़ा कर लिया रना वह उनको छोडता नहीं। एक एक को जैसे भून ही देता लगता ऐसे था जैसे कितनी बार बैंक को इस स्थिति से बचाया है। ऐसे अवसर पर मै प्राय चुप ही रहता था। जब बुरे दिन चल रहे हो तो अपना मुह बंद ही रखना चाहिए।
 मैंने गार्ड को बोला कि ग्रिल खोल दो मेरे पास आकार वह आराम से बैठा बोला
 “मुझे पहचान रहे है मैंने नकारात्मक उत्तर दिया मुझे मालूम नहीं था उसने पुनः बोला कि आवाज तो पहचान रहे होंगे
मैंने सौजन्यता से बोला “हाँ! हाँ! सुना-सुना सा लग रहा है
“अरे, आपके बैंक में हमलोग ही तो डाका डाले थे” उसने गर्व से कहा कि मानो  ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीता हो मै मारे डर से कॉंपने लगा
“डरिये नहीं, ये लीजिए 6 लाख यह मेरा धंधा है। और धंधे में बेईमानी नहीं करता हूँ उसने सांत्वना दिया
मैंने मन ही मन  सोचा कि ले तो दस लाख गया था पर वापस सिर्फ 6 ही कर रहा है। मन ही मन सोचा भागते भूत की लंगोटी भली।

“बाकि पैसा मैंने थाने में दे दिया उनसे ले लीजिए उसने मेरी शंका  का समाधान कर  दिया
 वसूल कर लेना या ‘एन पी ए’(अनिष्पादित खाता) समझ कर राईट ऑफ कर देना” उसने आगे कहा और अपने  बैंकिंग ज्ञान को प्रर्दर्शित किया।
“आपके शाखा में डाका डालने में हमें लॉस हो गया चार लाख दे चूका हूँ इस कार्य में मुझे तीन  लाख का खर्च आयातीन  लाख के लॉस में हूँइससे ज्यादा लॉस सहने कि हिम्मत नहीं है ये थाना प्रभारी बहुत लालची है पूरा का पूरा माल हड़प लेने चाहता है धंधे  में मिल बॉंटकर खाते है पर यह तो पूरा का पूरा खा जाना चाहता है  धंधे में ईमानदारी जरुरी है मै दूसरा जगह देख रहा हूँजहाँ अच्छे से काम कर सके
“मुझ माफ कीजिये कि आपको मेरे चलते बहुत कष्ट हुआ जिंदगी में यह सब चलता है’ वह कहता गया
मुझे उसका व्यवहार अजीब नहीं लगा लेकिन मै सोच रहा था कि पुलिस इतने दिन मुझे क्यों परेशान करती रही तो मैं डकैत महाराज से पूछ ही लिया कि पुलिस मुझे क्यों बुला रहा थी
“इसलिए कि आप किसी को पहचान दीजिए जिससे उनको दो चार लाख और मिल जाए मुझसे तो मिल ही रहा है” उसने मुझे समझायालगता नहीं कि आपको ज्यादा अनुभव है जिन्दंगी का। पढ़ना/पढाना ही सब कुछ नहीं है होता, कुछ अनुभव भी करना पडता है वह यह सब बोलकर मुझे सोच-विचार पर मजबूर कर दिया।
मुझे तो उसने जिंदगी का गणित समझाने के लिए छोड़ दिया था
मुझे अब सब गणित समझ में आ गया था लोग मेरे बारे में सही कहते है मै ही गलत हूँ जिंदगी में कौन, कब, क्या, सिखला जाये कोई नही जानता? तभी तो कहते है कि बंद घडी भी दो बार सही समय बताती है
संजय कुमार
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र
रायपुर

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