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26 October 2011

इतनी सी बात

इतनी सी बात
बात इतनी  है दिल में कि सिमट नहीं सकती,
चोट इतनी खायी है कि आंसू उतने निकल नहीं सकते|
दर्द को दवा मत दो, दर्द दो दरिया है|
इसमें डूबना उतरना ही बढ़िया है|
वो कौन सो जो रस्ते में बिछुड़   गया,
 साथ चलने को कहा था पर बीच में ही पिछड़  गया|
अपनी इतनी सी बात पर अटल रहा ,
थोड़ा सा लड़खड़ा  कर संभल  सका| 
 जिंदगी में निराशा है, असफलता है, और हार है 
ऐसा सब कहते है जो संभल सके |
 वख्त  के साथ चले  और वख्त को जकड़  सके|
हम तो वो लिबाश है जिस को पहनकर लोग,
जिंदगी नहीं मौत से कर सके|
वख्त को जकड़ सके, मंजिल को पकड़ सके|

संजय कुमार







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