इतनी सी बात
बात इतनी है दिल में कि सिमट नहीं सकती,
चोट इतनी खायी है कि आंसू उतने निकल नहीं सकते|
दर्द को दवा मत दो, दर्द दो दरिया है|
इसमें डूबना उतरना ही बढ़िया है|
वो कौन सो जो रस्ते में बिछुड़ गया,
साथ चलने को कहा था पर बीच में ही पिछड़ गया|
अपनी इतनी सी बात पर अटल न रहा ,
थोड़ा सा लड़खड़ा कर संभल न सका|
जिंदगी में निराशा है, असफलता है, और हार है
ऐसा सब कहते है जो संभल न सके |
न वख्त के साथ चले और वख्त को जकड़ सके|
हम तो वो लिबाश है जिस को पहनकर लोग,
जिंदगी नहीं मौत से कर सके|
वख्त को जकड़ सके, मंजिल को पकड़ सके|
संजय कुमार
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