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26 October 2011

निर्भय रहो यहाँ

निर्भय रहो यहाँ

निर्भय रहो यहाँ
यहाँ कोई डर नहीं होता
सोये रहो यहाँ कोई पत्थराव नहीं होता
रहे अँधेरा सड़को पर भले
दिलो में रोशनी होती यहाँ

छोटे से घरों में
जिंदगी बसती यहाँ|
निर्भय रहो  यहाँ
यहाँ कोई डर नहीं होता
घुमो ,चलो, दौड़ते रहो यहाँ
छुवो जो चाहे तुम्हे
यहाँ कोई ब्रीफकेस बम नहीं होता|
यहाँ जीना नहीं मुश्किल
यहाँ खतरा नहीं होता
घरों में भले नहीं हों कुत्ते
पर चोरी का डर नहीं होता|
यहाँ नहीं होते हत्या या बलात्कार
और न होते रोज के दंगे
खुदा या भगवान का क्या
चैन से रहते बंदे|
यहाँ गरीबी है, अज्ञानता है, अभाव है|
पर अमन चैन की जिंदगी यहाँ
नहीं होते जातीय दंगे यहाँ
और न होता कोई बंदा यहाँ
निर्भय रहो यहाँ,
यहाँ कोई डर नहीं होता|

यहाँ नहीं मनाई जाती शताब्दी,
गाँधी , महाबीर और बुद्ध की
और नहीं इनके मूल्यों का
 खून होता यहाँ|
निर्भय रहो यहाँ
यहाँ कोई डर नहीं होता |
यहाँ नहीं होते रात दिन के पहरे,
और नहीं होते दिन रात के लफड़े|
यहाँ कोई नहीं होता भेडिया मेमने की शक्ल में,
और नहीं घायल करता अपना बनाकर|
चले आओ यहाँ से यहाँ कोई डर नहीं होता
मिलो जब चाहो जिससे चाहो,
यहाँ ब्यक्ति महत्पूर्ण होता है |
यहाँ कार और टेलिफोन नंबर का नहीं क़द्र होता है |
चले आओ जब चाहो,
यहाँ दिन के उजाले में क्या
 रात के अँधेरे में भी नहीं लूटने  का डर नहीं होता
मिलो जिससे चाहो जब चाहो
यहाँ लोगो के हाथो में खंजर नहीं होता 
डरो नहीं यहाँ यहाँ कोई डर नहीं होता

संजय कुमार


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