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26 October 2011

तुमको देखता हूँ रोज

तुमको देखता हूँ रोज
तुमको देखता हूँ रोज
मंत्र मुग्द्ध हो जाता हूँ
लिख नहीं पाता
जबान बंद हो जाती है|
तुम्हारी याद आती है बहुत,
जीता हूँ इन बीते हुए लम्हों को,
एक पल खिचता हैं वर्ष की तरह|

रोज सोचता हूँ
यहीं लिखूं |
पर कलम रुक जाती है|
ऐसा क्यूँ होता है ?

सूर्य की सुनहरी किरणे छूती है जल लहरियों को  
महसूस होता है जैसे चुम्बन लिया है गालो पर|
फिर भी नहीं लिख पाता
ऐसा  क्यूँ होता है ?

ओस की बूंदों को
पत्ते  पर देखता हूँ |
एक सुकून मिलता है
सोचता हूँ यही कहूँ|
पर जुबान बंद हो जाती है|
चांदनी जैसे परती  है सामने के
आम के पत्तों पर
नहा जाता  हूँ तुम्हारे प्यार से|
सोचता हूँ यही लिखूं
पर कलम  नहीं चलती|
ऐसा क्यूँ होता है|

सबको मैं लिख पाता हूँ
क्योंकि मैं सबको प्यार करता हूँ
तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ|

संजय कुमार
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र
रायपुर




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