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28 October 2011

एक बूंद


एक बूंद

मैं

पानी की एक छोटी सी बूंद
अकेले,
बहुत अकेले,
जी तो सकती हूँ
जीत नहीं सकती |

अब जब निर्माण नहीं होता
बिध्वंस पहचान बनाता है
हमें नए पोजीशन दिलाता है
अनुकूल सुविधाएँ लाता है |
पर, मैं तो
पानी की छोटी सी बूंद
अकेले, बहुत अकेले
जोड़ तो सकती हूँ
तोड़ नहीँ सकती|
मैं जुड़ी तो अलग कहाँ,
जुडकर अलग नहीं हो सकती |

कहते है लोग,
मझधार नहीं किनारा बनो
पानी की बूंद नहीं
 धारा बनो |

पर मैं पानी की छोटी सी ,
अकेले बहुत अकेले
रो तो सकती हूँ रुला नहीं सकती

अस्तित्व की आश नहीं
असफलता पर उदास नहीं
अनियंत्रित प्यास नहीं

मैं तो
पानी की छोटी सी बूंद हूँ
धारा नहीं|

संजय   कुमार
मुख्य प्रबंधक   
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र
रायपुर                                           






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