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26 October 2011

नेता

आज के नेता
अब बोलना होगा नहीं
 उन्हें , जो जनता के सेवक बन
 वोट लेते   हैं, चले जाते है
मॉल  लूटकर घर  सजाते हैं
देश लूटकर  भविष्य बनाते हैं

 ईद की चाँद की तरह कम हीं दिखाई देते हैं
 कब आते और कब चले जाते हैं
पांच साल में बामुश्किल टकराते है
और होश  को 'आगोश' में लेकर वोट ले जाते है.
ये चरण छूकर सेवक बनाने का उपकर्म करते हैं
सेवा शुल्क लेने   का भी दुष्कर्म करते हैं. 

अब बोलना होगा नहीं
-जोर से नहीं
इन सफेदपोश   गुंडों को
 जो गए थे जेल, हत्या और बलात्त्कार  के जुर्म में
और लोट आये है 'मसीहा' बनकर

 हर चुनाव जीत जाते है
हभी छल पे कभी बल पे
कभी गुंडों के दल पे.

अब बोलना होगा नहीं,  जोर से नहीं,
जो दिखते है साधु   सन्यासी जैसे... 
और बात करते है आदर्शो की मूल्यों  की
 और खून करते है इन सब की.

दिन के उजाले   में जो संत दिखाई देते है
'ओ' रात के अंधरे में  बलात्कार तक करते है
इनपर  'हत्या' का इल्जाम है
 एक, दो या चार नहीं,
पूरे के पूरे समाज के
 नपुंसक बनाया है पीढ़ी दर पीढ़ी को
इसीलिए इन्हें बोलना होगा नहीं
जोर से नहीं.

हम सब है उपभोग की बस्तु
केवल एक दो चार नहीं
 हम सब.

इन्हें बोलना होगा नहीं, जोर से नहीं
 पशुओं  से तुच्छ है हम सब इनकी नजरों में
कूड़े  कर्कटो के ढेर है हम सब
इन्हें बोलना होगा नहीं, अब केवल नहीं.

हमें नहीं उठना पालतू जानवरों के स्तर  तक
उपभोक्ता  संस्कृति के उपभोग की बस्तु बनकर
नहीं ढो सकते इन्हें  एक बार फिर से
 एक ही गुलामी थी हम सब के लिए
अब इनकी नहीं करेंगें
अब इनकी नहीं करेंगें

संजय कुमार



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