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26 October 2011

प्रतिबिम्ब

प्रतिबिम्ब 
देखता हूँ  रोज
गलतियाँ  निकालते हुए तुम्हें
और हर चूक  में किसी किसी को जिम्मेवार बताते हुए
  
पर  मेरे दोस्त!
समाज व्यक्ति से बना है
यदि समाज के अपराध को तुमने जिया है,
तो समाज पर हुए
अपराध को किसने किया है.

अगर है  कुछ  है बुरा
हाथ  मत  झाड़ो जरा
 मत डरो, कुछ करोजिससे  हम बदले जरा.

आरोप लगाने से कुछ नहीं होता
कुछ भी नहीं होता.
एक भागने की  आदत है
लड़ो,  भिड़ो   कुछ  तो करो
सौ  'परसेंट' गाँधी नहीं बन सकते हो तो एक .'परसेंट' बनो.

समाज में विसंगतियाँ है,
रही हैं
पर 'एक' को 'एक' बताओ
'हत्या' और 'बलात्कार' को
चटकारे लेकर पढ़ने वाली खबर मत बनाओ

 दहशत  पैदा मत करो
विरोध की  ताकत ख़तम होती है
'न्यूज़' को उसी रूप में दिखाओ
उसमे मिर्च मसाला कम ही लगाओ
यदि तब भी,
सब कुछ है बुरा
तो सच  समझ जाओ.
कि ------    
" तुम अपना  ही प्रतिबिम्ब देख रहे हो
तभी सब कुछ  बुरा समझ रहे हो
जब तक हम अपने प्रतिबिम्ब  को देखते रहेंगे
अपने बारे में ही कहते  रहेंगे." 

संजय कुमार
GYANARJANज्ञानार्जन केंद्र
रायपुर


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