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26 October 2011

पत्थर को शीशे तरासते देखा बहुत

पत्थर को  शीशे तरासते देखा बहुत
पत्थर से शीसे  को तरासते हुए देखा बहुत
कोई शीसे से पत्थर को तरासे तो कोई बने
बीते लम्हों को कोसना है आसान
कोई नया लम्हा बना सके तो कोई बात बने
समस्या खड़ी  करना मेरी फिदरत तो नहीं
कोई समस्या सुलझा सके तो कोई बात बने.
हर कोई रास्ते में रोड़ा अटकाए खड़ा है
कोई नया रास्ता बना  सके तो कोई बात बने
फूलो में देखे है खुसबू बहुत
कोई काँटों की खुसबू ला सके तो कोई बात बने|
जंगलो में देखी  शांति बहुत,
कोई शहरों में ला सके तो कोई बात बने|
आदर्शो और मूल्यों की बात करना है आसान,
कोई जीवन में उतार सके तो बात बने|
मिथकों में जीना है तो जी लो मजे से,
अगर हकीकत दिला सके तो कोई बात बने |
समर्थो के लिए करते है सभी कुछ न कुछ,
कुछ गरीबो के लिए कुछ करो तो कोई बात बने
धारा में बहना बहुत ही आसान,
धारा की दिशा मोड सको तो कोई बात बने|
सफलता में मुस्कुराते हुए देखा है सभी को
बिफलता में हँसके  दिखाओ तो कोई बात बने|

मैं देखे है लोगो को चाँद  पर थूकते
एक नया चाँद बना सको तो कोई बात बने

मेमनों शक्ल  में भेडीया  बहुत देखे,
कोई भेडीया को मेमना बना सके तो कोई बात बने|
दंगे कारवाना   बहुत ही  आसान,
कोई अमन -चैन ला सके कोई बात बने|

तुमने भेजे है  आतंकवादी बहुत
अब अपने घर को बचा सको तो कोई बात बने|
कश्मीर को तोडने की कोशिस की बहुत,
अब सिंध बचा सको तो कोई बात बने |

 बाप दादों की कमी पर इठलाना है बहुत आसान
दो रोटी अपने कमा सको तो कोई बात बने | 

कायरो के भीड के अगुआ बहुत बन लिए,
अब बहादुरों की पंक्ति में आ सको तो कोई बात बने|
बहुत मनायी शताब्दिया गाँधी, महाबीर  और बुध की,
अब उनके मूल्यों को उतार सको तो कोई बात बने|
बहुत बाटी नफरत हिंसा और बैमनस्य,
कुछ प्यार बाट सको तो कोई बात बने|
जो रोज देखतेआयें  ओ देखा बहुत,
कुछ नया कर दिखाए तो कोई बात बने|       
  
संजय  कुमार
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन  केंद्र
रायपुर

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