सच कहो सच कहो ? तुम मुझे जानती नहीं, महीनों साथ रहने पर, पह्चानती नहीं| कुछ मुश्किल नहीं होता, हंसी खुशी कोई जीना चाहे| एक बार में नहीं मिलता, मिल हीं नहीं सकता| किसी के हिस्से में नहीं आता पूरा का पूरा धुप और सारा का सारा आकाश | मुठी भर अनाज रखती है जीवित हम सब के प्राण| तो क्यों न करे प्यार| तो क्यों न करे प्यार मैं कर रहा हूँ इसका इजहार | | तुम कहती हो मैं प्यार नहीं करता| क्योंकि मैं लिखता नहीं बारम्बार | पर सोचता हूँ पत्र बढाता है केवल प्यार जिसे रखता हूँ अंतस कोने में, उसे कितना कर कर सकता हूँ पत्र से इजहार| पर नहीं करूँगा न कोई विवाद, भावनाओं का नहीं करना तिरस्कार, विवाद से मिलता नहीं कुछ भावनाएँ आहत जरुर होती है| मैं आहत नहीं कर सकता प्यार जो तुमसे करता हूँ | पर फिर कहता हूँ तुम मुझे जानती नहीं महीनो साथ रहने पर पहचानतीं नहीं | संजय कुमार स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र रायपुर |
संबध तो पानी से भरा माथे पर रखा मिट्टी का घड़ा है जिसे बड़ी सावधानी से लेकर पनघट से घर तक लाना पडता है. जरा सी सावधानी हटी कि घड़ा जमीन पर गिर जाता है और पानी भी बह जाता है. इन्ही रिश्तों ने मुझे ताकत दी है कि खुश रह सकूँ.
Search This Blog
26 October 2011
सच कहो
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment