Search This Blog

26 October 2011

सच कहो

सच कहो  
सच कहो ?
तुम मुझे जानती नहीं,
महीनों साथ रहने पर,
पह्चानती नहीं|
कुछ मुश्किल नहीं होता,
हंसी खुशी कोई जीना चाहे|
एक बार में नहीं मिलता,
मिल हीं नहीं सकता|
किसी के हिस्से में नहीं आता
पूरा का पूरा धुप और सारा का सारा आकाश |
मुठी  भर अनाज रखती है
जीवित  हम सब के प्राण|
तो क्यों न करे प्यार|

तो क्यों न करे प्यार
मैं कर रहा हूँ इसका इजहार |


तुम कहती हो मैं प्यार नहीं करता|
क्योंकि मैं लिखता नहीं  बारम्बार |
पर सोचता हूँ
पत्र बढाता  है केवल प्यार
जिसे रखता हूँ अंतस कोने में,
उसे कितना कर कर सकता हूँ पत्र से इजहार|
पर नहीं करूँगा न कोई विवाद,
भावनाओं का नहीं करना तिरस्कार,
विवाद से मिलता नहीं कुछ
भावनाएँ आहत जरुर होती है|

मैं आहत नहीं कर सकता 
प्यार जो तुमसे करता हूँ |
पर फिर कहता हूँ तुम मुझे जानती नहीं
महीनो साथ रहने पर पहचानतीं नहीं |
संजय कुमार
स्टेट बैंक ज्ञानार्जन केंद्र
रायपुर




No comments:

Post a Comment