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10 October 2012

बात इतनी छोटी सी थी

 बात इतनी छोटी सी थी

बात इतनी छोटी थी
पर तुम जोर से हंसी थी
साड़ी की सलवटो में तुम
क्या खूब  दिखी हो

मोतियों से दांत
किस  तरह बिखर गए थे
लाल रंग  की चूनरी पर तुम क्या फबी थी
बात कितनी छोटी सी थी --- पर तुम जोर से हंसी थी
सुनहले से केश तुम्हारे
किस तरह बिखर गए थे
और तुम किस तरह अनजान खड़ी  थी
जबकि आंख तुम्हारे ढक चुके थे

उस दिन की हीं बात लो
जब हम तुम मिले थे
शरीर तुमने किस तरह सिमटा लिया था
और लाज से किस तरह गड़ गयी थी
होठ तुम्हारे किस तरह सिल गए थे.
हवा  की इक सरसराहट   से तुम
 किस तरह डरी  थी
आंख तुमने पूरी तरह से ढक  लिया था.

 आज जब हम वर्षो साथ रहे हैं
दुखो और सुखो से साथ चले हैं.

 तब बात इतनी छोटी सी थी तुम जोर  से हंसी थी
खुल गए से सारे द्वार
हो गयी थी जिंदगी एक बहार
पर अब ऐसा नहीं होता कोई बताये  एक बार
जबकि बात इतनी बड़ी है 
तुम  नहीं हंसी थी

इस समय  की बात लो
बात  कितनी बड़ी है
पर तुम नहीं हंसी हो

और कितने गीत लिखू तुम पर
जब तुम चुप -चाप खड़ी  हो 
बात कितनी बड़ी थी
 तुम नहीं हंसी हो.


संजय कुमार

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