बात इतनी छोटी सी थी
बात इतनी छोटी थी
पर तुम जोर से हंसी थी
साड़ी की सलवटो में तुम
क्या खूब दिखी हो
मोतियों से दांत
किस तरह बिखर गए थे
लाल रंग की चूनरी पर तुम क्या फबी थी
बात कितनी छोटी सी थी --- पर तुम जोर से हंसी थी
सुनहले से केश तुम्हारे
किस तरह बिखर गए थे
और तुम किस तरह अनजान खड़ी थी
जबकि आंख तुम्हारे ढक चुके थे
उस दिन की हीं बात लो
जब हम तुम मिले थे
शरीर तुमने किस तरह सिमटा लिया था
और लाज से किस तरह गड़ गयी थी
होठ तुम्हारे किस तरह सिल गए थे.
हवा की इक सरसराहट से तुम
किस तरह डरी थी
आंख तुमने पूरी तरह से ढक लिया था.
आज जब हम वर्षो साथ रहे हैं
दुखो और सुखो से साथ चले हैं.
तब बात इतनी छोटी सी थी तुम जोर से हंसी थी
खुल गए से सारे द्वार
हो गयी थी जिंदगी एक बहार
पर अब ऐसा नहीं होता कोई बताये एक बार
जबकि बात इतनी बड़ी है
तुम नहीं हंसी थी
इस समय की बात लो
बात कितनी बड़ी है
पर तुम नहीं हंसी हो
और कितने गीत लिखू तुम पर
जब तुम चुप -चाप खड़ी हो
बात कितनी बड़ी थी
तुम नहीं हंसी हो.
संजय कुमार
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